भारत के पहले राष्ट्रपति जिन्होंने 12 वर्षो के कार्यकाल में आधा वेतन ही लिया

भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने 26 जनवरी 1950 को प्रथम बार भारतीय राष्ट्रपति के पद को सँभाला।वर्ष 1957 में वे दुबारा राष्ट्रपति पद के लिए चुने गये।वे एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति हैं, जिनका कार्यकाल 12 वर्ष का रहा।वे भारतीय राजनीति इतिहास के सबसे सम्मानित नेता रहे।जब राजनीतिक झगड़े और भ्रष्टाचार देश में सबसे ऊपर पर थे।उस समय में भी इतना सरल जीवन जिया।जो हम सबके लिए प्रेरणा हैं।हमारे भारत के पहले राष्ट्रपति से हम सिख सीख सकते हैं।वे भी एक भारतीय थे।राजनेता तो बाद में थे।डॉ राजेन्द्र प्रसाद के जीवन से जुड़ी कुछ शिक्षाप्रद तथ्य,जो हर भारतीय को एक प्रेरणा देती हैं और हमें भी प्रोतसाहित करती हैं कि हम भी उनके जीवन से कुछ सीखें।

 

अपना काम उनको खुद करना ही पसंद था।

 

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ही उनके प्रेरणास्रोत हुए।उन्होंने उनसे प्रभावित होकर सिर्फ एक व्यक्तिगत कर्मचारी को ही काम के लिए रख।इसके अतिरिक्त वे अपना काम स्वयं किया करते थे।जब वे जेल में थे।लगभग तीन वर्षों तक जेल में रहें।इस बीच भी जब कभी उनके परिवार से कोई उनसे मिलने के लिए आता था। तो,खास कर उन्हें अपने परिवार के बच्चों की बहुत चिंता होती थी।परिवार में सभी बच्चे यह नहीं जानते थे कि डॉ राजेंद्र प्रसाद कितने बड़े नेता हैं। उनकी पत्नी राजबंसी देवी सबसे कह देती थी कि वह उनके दादा जी हैं।उनके परिवार वालों को शुरू से ही एकदम विनम्रता पूर्वक रहना ही पसंद था।

डॉ राजेंद्र प्रसाद हमेशा आधा वेतन ही लिया करते थे।

 

राष्ट्रपति के पद पर रहते हुए उन्होंने अपने वेतन का 50 प्रतिशत ही लिया।उस वक़्त राष्ट्रपति को मासिक वेतन 10 हजार रुपए मिला करती थी।वह हमेशा ही एक घरेलू व्यक्ति की तरह ही जीवन व्यतीत करते रहें। जब उनके पोते अपने स्कूल से लौट आते थे।तब ही वे अपने पोतों के साथ खाना खाया करते थे।राष्ट्रपति के पर रहते हुए उन्हें कई उपहार दिए गए।पर,उन्होंने इन उपहारों को मन कर वापस कर दिया।क्योंकि,उनकी भौतिक सुख सुविधाओं में रुचि नहीं थी।लेकिन, भारत आए कुछ विदेशी लोगों के छोटे स्मृति चिन्ह और ऑटोग्राफ को इकट्ठे किए।यह उनका एक शौक रहा।

 

उनका परिवार एक पढ़े लिखे परिवार में से एक था। उनके पास पर्याप्त पैसा था कि वह अपने लिए कार खरीद सकते थे।उन्होंने खरीदी भी।लेकिन, जब कुछ राजनेताओं द्वारा उनके कार रखने पर सवाल उठाए गए और कहा कि अगर वे राष्ट्रपति न रहते तो वह कभी भी कार न खरीद पाते। तभी उन्होंने तुरन्त ही कार वापस कर दी।ऐसे थे हमारे प्रथम राष्ट्रपति।

 

उन्होंने अपने हाथ से स्वयं बुनकर अपनी पोतियों को साड़ियां उपहार में दी।

 

 

जब उनकी पोतियों की शादी हुई तो उन्होंनें कोई भी उपहार को स्वीकार नही किया।जबकि उनके पोतियों की शादियां उनके राष्ट्रपति कार्यकाल में हुईं।उस वक़्त में एक रिवाज होता था कि घर में जब कोई विवाह हो तो सभी बेटियों को साड़ियां दी जाती थीं।उन्होंने साड़ियां न ही खरीदी न किसी से बनवाई।बल्कि,उन्होंने खुद के हाथ से साड़ियां बुनकर अपनी बेटियों को उपहार स्वरूप दी।

 

50 प्रतिशत की जगह 25 प्रतिशत वेतन लेने लग गए थे डॉ राजेंद्र प्रसाद।

 

 

राष्ट्रपति के तौर जब उनका कार्यकाल समाप्त होने के अंत में था।तो,उन्होंने अपना वेतन कम कर दिया और वह 25 प्रतिशत सैलरी लेने लग गए थे। इस प्रकार वह 2500 रुपए ही वेतन लेते थे। जब वह रिटायर होने के बाद बीमार पड़ गए।तो वह दिल्ली में रहने के बजाय अपने राज्य बिहार लौट गए। वहां उन्होंने सदाकत आश्रम में अपने अंतिम दिन व्यतीत किये। उन्हें शहर में बेहतर मेडिकल सुविधा मिल सकती थीं। लेकिन उन्होंने मना करते हुए कहा, “मैं जहां से दिल्ली आया हूं, वहीं वापस जाऊंगा।”इतने सरल और स्वच्छ छवि के डॉ राजेन्द्र प्रसाद।आज के नेताओं की अगर बात करें तो शायद ही कोई ऐसे होंगे।पर,हमें इनसे कुछ सीखने की जरूरत हैं।इनके आदर्शो पर अगर चल सके।तो बहुत ही गर्व की बात होगी।

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