धनबाद शुरू से ही कांग्रेस और मासस का गढ़ रहा :: डी एन प्रसाद क्लिक करें और जाने।

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आज धनबाद क्लब में अखिल भारतीय कायस्थ महासभा की प्रेस वार्ता में जिलाध्यक्ष डी एन प्रसाद ने मीडिया को संबोधित करते हुए ये बातें कहीं ।
धनबाद शुरू से ही कांग्रेस और मासस का गढ़ रहा पर पहली बार यहाँ भाजपा का पताका लहराई प्रोफ रीता वर्मा ने । 1991 में रणधीर वर्मा की शहादत के बाद भाजपा ने प्रो रीता वर्मा जी को लोकसभा का टिकट दिया और रीता जी ने यहा जीत दर्ज की और लगातार चार बार तक धनबाद लोकसभा का सांसद रही । पहली बार जब रीता वर्मा जी हारी तो उस समय पूरे झारखंड में भाजपा एक सीट के अलाव कोई सीट नही जीत पाई । इकलौता बाबुलाल मरांडी ही जीते । आगामी चुनाव में भाजपा ने उस हर प्रत्यासी को टिकट दिया जो पिछले चुनाव में हारे थे पर सिर्फ एक रीता जी का ही टिकट काटा गया । और आज तक पार्टी ने उनकी उपेक्षा की । दो दिन पहले भाजप के प्रदेश प्रवक्ता ने धनबाद आकर रीता जी के खिलाफ बयान दिया । इससे पूरा कायस्थ समाज इससे मर्माहत है । और इस बयानबाजी की घोर निंदा करते है । कायस्थ बुद्धिजीवी वर्ग है और हमेशा भाजपा का साथ दिया है पर पिछले कुछ सालों से भाजपा ने कायस्थों की लगातार उपेक्षा की है ।
पूरे झारखंड में सबसे ज्यादा मतो से जितने वाले राज सिन्हा को मंत्री नही बनाया गया जबकि अगड़ी जाती से सबको स्थान दिया गया ।
पार्टी से लगातार अपमानित होने के बाद शत्रुघ्न सिन्हा ने इन दिनों कांग्रेस का दामन थाम लिया ताकि वो अपनी सामाजिक जिम्मेदारी का निर्वाह कर सके पर जब से उन्होंने पार्टी छोड़ा है लगातार उन्हें और बेटी सोनाक्षी सिन्हा के खिलाफ सोसल मीडिया पर असंवैधानिक टिप्पणी भाजपाइयों द्वारा किया जारहा जिसे किसी सूरत में बर्दाश्त नही किया जाएगा ।पार्टी आज अनुशासन की बात कर रही वो इतने दिन अंधो की भांति क्यों थी । जबसे रघुवर दास की सरकार बनी न जाने कितनी बार अनुशासन की ऐसी तैसी की गई । इसी का एक जीवंत उदाहरण बाघमारा विधायक और गिरिडीह सांसद के बीच हुए विवाद का भी है । उस पार्टी को अनुशासनहीनता नही दिख रहा था । खुद रघुवर दास भी अनुशासन की ऐसी तैसी कर चुके है तब पार्टी कहा थी जब विधानसभा में उन्होंने गली का प्रयोग किया था । अभी हाल में साहबगंज में भाजपा के जिलाध्यक्ष और महामंत्री आपस में भिड़ गए जबकि अनंत ओझा जी का कार्यक्रम था । ऐसे कई उदाहरण भरे पड़े है पर कभी कोई कार्यवाही नही हुई । अगर पार्टी हमे कमजोर समझ नजरअंदाज करने का प्रयास करती है तो बता दे कि धनबाद लोकसभा में कायस्थों की संख्या करीब दो लाख है और सभी एकजुट है । कायस्थों की उपेक्षा का परिणाम भाजपा को इस चुनाव में देखना पड़ सकता है।

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