कभी पढ़ने में थी कमजोर,मेहनत कर बनी हूँ मैं सीए-रिंकी ठक्कर।

युधिष्ठिर महतो(कुमार युडी)।


शास्त्रीनगर(धनबाद)।रिंकी ठक्कर वर्तमान में एक सीए हैं।लेकिन,इस मुकाम तक आने के लिए जितनी मेहनत रिंकी ने की हैं।उतना ही योगदान उसकी माँ लता ठक्कर का भी हैं।अपने माँ के सहयोग से ही इन्होंने सीए बनने का अपना सपना पूरा किया।इसकी माँ खुद 8वीं तक ही पढ़ी लिखी हैं।साथ ही इनकी माँ की शादी बहुत कम उम्र में हो गयी थी।पर,उन्होंने अपनी बेटियों को पढ़ाया।जिस समाज से रिंकी हैं,उस समाज में लड़कियों को न ही अधिक पढ़ाने का रिवाज हैं और न ही नौकरी करने की अनुमति भी हैं।पर,जैसे-जैसे जागरूकता समाज में फैली हैं।इनके समाज में भी कई प्रथा में बदलाव हो रहा हैं।रिंकी की सफलता से खुश होकर लोहाना समाज ने इन्हें सम्मानित भी किया।


बचपन में रिंकी पढ़ने में बहुत कमजोर थी।उतना ज़्यादा मन नहीं लगता था।इनके भाई बहन पढ़ने में बहुत अच्छे थे।पढ़ना लिखना इन्हें एक बोझ की तरह लगता था।लेकिन,कार्मेल स्कूल धनबाद से 12th करने के बाद पढ़ाई में थोड़ा ध्यान ज़्यादा ही देने लगी।चूँकि,गणित और एकाउंट्स में रुचि थी और इनकी बहन नेहल ठक्कर भी सीए की तैयारी कर रही थी।तो रिंकी ने भी मन बना लिया कि वह भी सीए बनेगी।रिंकी की इस सोच को कई लोगों ने गलत कहा।साथ ही लोगों ने यह भी सलाह दी कि लड़की हैं ज़्यादा पढ़ाकर कोई फायदा नहीं होगा।आखिर,तो शादी करके ससुराल ही जाना हैं।पर,माँ के सहयोग और अपने आत्मविश्वास के दम पर उन्होंने अपनी सोच को नहीं बदला।वह 2007 से सीए के लिए तैयारी कर रही थी।दिन के 18 घण्टे मेहनत के बाद 2011 में सीए का सपना पूरा किया।इस बीच न ही कोई त्यौहार मनाया और न ही कही आना जाना किया।उन्होंने अपना पूरा फोकस सीए बनने में लगा दिया।


इनके पिता जितेंद्र ठक्कर एक कपड़े के व्यवसायी हैं।साथ ही विटी इंफ्रा नाम से कंस्ट्रक्शन कंपनी भी चलाते हैं।इनके पिता का बहुत सहयोग रहा हैं।
सीए करने के बाद जब धनबाद आयी तो शुरू-शुरू में थोड़ी मुश्किल जरूर रही।पर जो अनुभव धनबाद में रिंकी ने सीखा।वह शायद बाहर रहकर सम्भव नहीं था।यहाँ धनबाद में आरके पटनियाँ से 2 साल तक प्रैक्टिस किया। अब जब लोग जानने लगे हैं।इस कारण काम की कोई कमी और परेशानी नहीं रही हैं।वर्ष 2016-17 में आईसीएआई स्टूडेंट्स एसोसिएशन की अध्यक्ष भी थी और अभी वर्तमान में 2017-18 के लिए भी अध्यक्ष पद पर बनी हुई हैं।


रिंकी अपने काम में व्यस्त रहने के बावजूद कई सामाजिक संस्थाओं से भी जुड़ी हुई हैं।पहला कदम,एक और प्रयास इन दो संस्थाओं से एक सदस्य के रूप में जुड़ी हुई हैं।सामाजिक कार्यों के साथ-साथ राजनीति में भी इनकी रुचि हैं।माँ रात भर इसके साथ जगी रहती थी।जब कभी भी फैल होती थी,तो रिंकी से ज़्यादा दुःख उसकी माँ को होता था।रिंकी तो अपनी हर हार से कुछ सीखने की ही कोशिश करती हैं।


समाज में लड़कियाँ आज भी स्वतंत्र नहीं हैं।न ही पुलिस प्रशासन लड़कियों के साथ हो रही अपराध को रोकने में कामयाब रहीं हैं।आज भी लड़कियों को न ही ज़्यादा सहयोग मिलता हैं और न ही आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहन।वर्तमान में भी लड़कियाँ अपने हक़ के लिए संघर्षरत हैं।समाज में हर जगह कहीं न कहीं किसी रूप में लड़कियों का शौषण होता ही हैं।घरेलू हिंसा,दहेज प्रथा,दुष्कर्म आदि जैसे कई अपराध की शिकार आज भी लड़कियाँ हो रही हैं।इन सभी चीजों से छुटकारा सोच में परिवर्तन लाने से जल्दी संभव हैं।साथ ही हर लड़की को सेल्फ डिफेंस सीखना बेहद जरूरी हैं।ताकि,लड़कियाँ अपनी सुरक्षा स्वयं कर सकें।
रिंकी अपनी माँ को अपना आदर्श मानती हैं और जो लड़कियाँ सीए के क्षेत्र में अपना भविष्य बनाना चाहती हैं।वह नकारात्मक चीजों को इग्नोर करें।अपने आप को खुद मोटिवेट करें और फैल होने के बावजूद हार नहीं माने।

★रिपोर्टर:-सरताज खान

छायाकार:-संतोष कुमार यादव

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